एक घंटे की अवधि के इस ध्यान के तीन चरण हैं। बैठ कर करने वाली इस विधि में गुंजार तथा हस्त-मुद्राएं आंतरिक-संतुलन पैदा करती हैं तथा शरीर एवं मन के बीच लयबद्धता पैदा करती हैं। इस ध्यान के लिये कोई भी समय उपयुक्त है। इस ध्यान को खाली पेट करें तथा तीनों चरणों के पश्चात कम से कम 15 मिनट तक अपने शरीर को शिथिल छोड़ दें।
“नादब्रह्म में यह स्मरण रखें : शरीर व मन साथ-साथ रहें परंतु ध्यान रहे कि आपको साक्षी बने रहना है। इन दोनों से धीरे-धीरे, आराम से, पिछले दरवाज़े से बाहर आते जायें, बिना किसी लड़ाई या संघर्ष के। वे पी रहे हैं - तुम बाहर हो जाओ और बाहर से देखो...” ओशो |
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| दूसरा चरण: 15 मिनट दूसरा चरण साढ़े सात-सात मिनट के दो भागों में बंटा हुआ है। पहले साढ़े सात मिनट में दोनों हथेलियां आकाशोन्मुखी फैला कर नाभि के पास से आगे की ओर बढ़ाते हुए चक्राकार घुमाएं। दायां हाथ दायीं ओर और बायां हाथ बायीं ओर चक्राकार घुमाएं। और तब वर्तुल पूरा करते हुए दोनों हथेलियों को पूर्ववत नाभि के सामने वापस ले आएं। यह गति साढ़े सात मिनट तक जारी रखें। गति इतनी धीमी हो कि कई बार तो ऐसा लगेगा कि कोई गति ही नहीं हो रही है। भाव करें कि आप अपनी ऊर्जा बाहर ब्रह्मांड में फैलने दे रहे हैं। साढ़े सात मिनट के बाद हथेलियों को उलटा, भूमिउन्मुख कर लें और उन्हें विपरीत दिशा में वृत्ताकार घुमाना शुरू करें। अब फैले हुए हाथ नाभि की ओर वापस आएंगे फिर पेट के किनारे से बाहर वृत्त बनाते हुए बाजुओं में फैल कर फिर वृत्त को पूरा करते हुए नाभि की ओर वापस लौटेंगे। अनुभव करो कि तुम ऊर्जा भीतर ग्रहण कर रहे हो। पहले चरण की तरह शरीर में यदि कोई धीमी गति हो तो उसे रोकें मत, होने दें। डेमो देखें: 56K | 64K | 100K | 200K | 300K |
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